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News Desk| Muzaffarpur
नीतीश्वर महाविद्यालय में हिंदी और उर्दू विभाग ने संयुक्त रूप से कथा सम्राट प्रेमचंद की जयंती को एक यादगार अवसर में बदल दिया। 'उर्दू-हिंदी और प्रेमचंद की साझी विरासत' विषय पर आयोजित एक विचार गोष्ठी में विद्वानों ने प्रेमचंद के साहित्य में निहित 'गंगा-जमुनी तहजीब' और इंसानियत के मूल्यों को रेखांकित किया।
विद्वानों ने किया प्रेमचंद को याद :'
बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से डॉ. राकेश रंजन और डॉ. सुशांत कुमार, तथा उर्दू विभाग से प्रोफेसर डॉ. हामिद अली खां, और एमडीडीएम कॉलेज से डॉ. मोबश्शिरा सदफ़ कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर शामिल हुए। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार ने शॉल, मोमेंटो और पौधे भेंट कर अतिथियों का स्वागत किया।
प्रेमचंद के साहित्य पर गहन चर्चा:
प्रोफेसर डॉ. हामिद अली खां ने प्रेमचंद को केवल कथाकार नहीं, बल्कि एक 'सोशल हिस्टोरियन' बताया, जिनकी खूबी समाज की नब्ज को पकड़ना थी। डॉ. राकेश रंजन ने प्रेमचंद साहित्य की केंद्रीय चिंता को भूख, उत्पीड़न, दलन, शोषण और गरीबी बताया। उन्होंने उनकी रचनाओं को इंसानियत का प्रामाणिक दस्तावेज़ कहा। डॉ. सुशांत कुमार ने प्रेमचंद के निबंध 'महाजनी सभ्यता' का जिक्र करते हुए कहा कि उनके वैचारिक निबंधों का अध्ययन भी आवश्यक है ताकि उनके मूल्यों को सही ढंग से समझा जा सके। डॉ. मोबश्शिरा सदफ़ ने प्रेमचंद के स्त्री पात्रों में साझा संस्कृति के चित्रण पर प्रकाश डाला।
'प्रेमचंद का व्यक्तित्व प्रेरणादायक':
महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो. निखिल रंजन प्रकाश ने प्रेमचंद के साहित्य में भाषा और संस्कृति के सुंदर समन्वय की सराहना की। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य प्रो. प्रमोद कुमार ने कहा कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व हमें देश और समाज के लिए बेहतर योगदान देने हेतु प्रेरित करता है। डॉ. कामरान गनी ने विषय का परिचय देते हुए कहा कि प्रेमचंद का साहित्य हमारी ज़मीन, ज़बान और ज़िंदगी के साझे एहसास को प्रस्तुत करता है, जो हमें जोड़ने का काम करता है। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. कामरान गनी और शशि कुमार पासवान ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. बेबी कुमारी ने किया। इस अवसर पर छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दीं और विभिन्न संकायों के प्राध्यापक भी उपस्थित रहे।
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