Why Young India Feels So Lonely - क्या आपकी स्क्रीन फ्रेंडशिप सच्ची है?

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Lifestyle
Why Young India Feels So Lonely: आज के समय में सोशल मीडिया, इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स और वीडियो कॉलिंग की मदद से हम 24x7 जुड़े रह सकते हैं। फिर भी कई युवा खुद को बेहद अकेला और भावनात्मक रूप से खाली महसूस करते हैं। एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 18 से 25 साल के हर तीन में से एक युवा को गंभीर स्तर का अकेलापन महसूस होता है। सोचने वाली बात यह है कि इतने सारे डिजिटल कनेक्शन के बावजूद ऐसा क्यों हो रहा है?
आइए जानते हैं इसके बारे में:-
‘कनेक्टेड’ होकर भी अकेले क्यों?
डिजिटल जमाने में सच्चा रिश्ता बनाना इतना मुश्किल क्यों?
क्या कर सकते हैं हम?
आज की पीढ़ी ने बचपन से ही स्मार्टफोन और स्क्रीन के साथ जीना शुरू किया। लेकिन लगातार स्क्रीन पर रहने की आदत हमारी सोच, व्यवहार और रिश्तों पर असर डाल रही है।
जब हम किसी पोस्ट पर लाइक या कमेंट करते हैं, या कोई नोटिफिकेशन आता है, तो दिमाग में ‘डोपामिन’ नामक एक केमिकल रिलीज होता है जो हमें अच्छा महसूस कराता है। धीरे-धीरे हम इसी डिजिटल खुशी के पीछे भागने लगते हैं, और असली भावनात्मक जुड़ाव फीका पड़ने लगता है।
जजमेंट का डर
पहले जब किसी दोस्त से कोई गलती हो जाती थी, तो वह बस उसी दायरे में रहती थी। आज एक छोटी सी गलती या अजीब पल भी सोशल मीडिया पर वायरल हो सकता है। इस डर ने युवाओं को खुलकर बोलने और एक्सपेरिमेंट करने से रोक दिया है। ऊपर से हर कोई अपने सोशल मीडिया पर सबसे अच्छा और चमकदार हिस्सा दिखा रहा है – एडिटेड फोटो, परफेक्ट कैप्शन, खुशी की झलक। इन्हें देखकर लोग अपनी असल जिंदगी से तुलना करने लगते हैं और खुद को कमतर महसूस करने लगते हैं। यही निराशा धीरे-धीरे अंदर तक अकेलापन भर देती है।
असली जुड़ाव के लिए साहस चाहिए। इसमें भावनात्मक जोखिम होता है – रिजेक्शन का डर, गलतफहमी का डर, और यह डर कि सामने वाला हमारी सच्चाई को स्वीकार करेगा या नहीं।ऑनलाइन दुनिया में हम चीजों को कंट्रोल कर सकते हैं – जो अच्छा लगे वो दिखाएं, बाकी छिपा लें। ये आसान लगता है, लेकिन इसी वजह से रिश्ते सतही बन जाते हैं। हम हँसते हैं, बातें करते हैं, लेकिन दिल से जुड़ नहीं पाते। असल में हम ‘सेफ’ रहने के चक्कर में वो गहराई छोड़ देते हैं, जो अकेलेपन को मिटा सकती थी।

सोशल मीडिया का इस्तेमाल सीमित करें, खासकर रात को सोने से पहले।
हफ्ते में कम से कम एक दिन डिजिटल डिटॉक्स अपनाएं – मोबाइल से दूरी बनाएं।
ऐसे दोस्तों से मिलें जिनसे बिना किसी दिखावे के बात की जा सके।
भावनाएं शेयर करने से न डरें – सब कुछ परफेक्ट होना ज़रूरी नहीं।
ज़रूरत लगे तो किसी थेरेपिस्ट या काउंसलर से बात करना भी ठीक है।
Disclaimer: यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से है। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी है।