वरिष्ठ साहित्यकार, बहुभाषाविद् और आलोचक आचार्य निशांतकेतु का 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। गुरुग्राम के पालम विहार में स्थित पार्क हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ महीनों से बीमार चल रहे थे और सोमवार को उन्हें अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। 23 मार्च 1935 को बिहार के वैशाली में जन्मे आचार्य निशांतकेतु ने पटना विश्वविद्यालय से हिंदी में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने पटना कॉलेज में 37 वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया। सेवानिवृत्ति के बाद, वे गुरुग्राम में रहने लगे।
साहित्यिक क्षेत्र में बड़ा योगदान
आचार्य निशांतकेतु ने साहित्य की कई विधाओं में अपना योगदान दिया। उन्होंने 100 से ज़्यादा किताबें लिखीं और संपादित कीं। उनकी प्रमुख रचनाओं में 100 कहानियों का संग्रह 'दर्द का दायरा' और 'आखिरी हँसी', 7 कविता संग्रह जैसे 'रेत की उर्वर शिलाएँ', 'ज्वालामुखी पुरुषवाक्' और 'समव्यथी', तथा 3 उपन्यास जैसे 'ज़िंदा ज़ख़्म' और 'योषाग्नि' शामिल हैं। उन्होंने 'सूत्र', 'भारती', और 'चक्रवाक्' जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे दो दशकों तक सुलभ साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष भी रहे।
अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि
आचार्य निशांतकेतु का अंतिम संस्कार दिल्ली के ग्रीन पार्क श्मशान घाट में हुआ। उनके ज्येष्ठ पुत्र अभिषेक दिनमान ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनके निधन पर पद्मश्री राम बहादुर राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, डॉ. गंगेश गुंजन, और सविता चड्ढा सहित कई साहित्यकारों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शोक व्यक्त किया है। साहित्यिक जगत में उनके निधन को एक अपूरणीय क्षति माना जा रहा है। वे अपने पीछे पत्नी, दो बेटियों और दो बेटों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
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